Sunday, 16 August 2015

भगवद गीता यथारूप (Bhagvad Gita as it is (Hindi)

                                          क्लैब्यं मा स्म गमः पार्थ नैतत् त्वयि उप्प्ध्ते  |
                                          क्षुद्रं हर्दयः दौर्बल्यं त्यक्त्वा उत्तिष्ठ परम् तप |
                                                                                                                              Bhagvad Gita 2.3
हे प्रथापुत्र ! इस हीन नपुंसकता को प्राप्त मत होओ । यह तुम्हे शोभा नहीं देती। हे शत्रुओ के दमनकर्ता ! हृदये की शूद्र दुर्बलता को त्याग कर युद्ध के लिए खड़े हो जाओ।                                           Bhagvad Gita 2.3

तात्पर्ये :   श्रीला प्रभुपाद के द्वारा :  अर्जुन को पार्थ पुत्र के रूप मैं सम्बोधित किया गया है।  पृथा कृष्ण के पिता वासुदेव की बहन थी। अतः कृष्ण के साथ अर्जुन का रक्त सम्बन्ध था।  यदि क्षत्रिये पुत्र लड़ने से मन करता है तो वह नाम का क्षत्रिये है।  और यदि ब्राह्मण पुत्र अपवित्र कार्य करता है तो वह नाम का ब्राह्मण है।  ऐसे क्षत्रिये एवं ब्राह्मण अपने पिता के अयोग्ये पुत्र होते  है।  अतः  कृष्ण यह नहीं चाहते थे कि अर्जुन अयोग्ये क्षत्रिये पुत्र कहलाये। अर्जुन कृष्ण का घनिष्टम् मित्र था और कृष्ण प्रत्यक्ष रूप से उसका रथ का संचालन कर रहे थे, किन्तु यह सब होते हुए भी अगर अर्जुन युद्धभूमि छोड़ता है तो वह अत्यंत निंदनीय कार्ये करेगा।  अतः कृष्ण ने कहा की ऐसी प्रवृति अर्जुन के व्यक्तिव को शोभा नहीं देती।  अर्जुन यह तर्क कर सकता था की वह परम पूज्य भीष्म तथा स्वजनो के प्रति उदार दृष्टिकोण के कारण युद्धभूमि छोड़ रहा है, किन्तु कृष्ण ऐसी उदारता को केवल हृदये का दौर्बल्ये मानते  है। ऐसी झूठी उदारता का अनुमोदन एक भी शाश्त्र नहीं करता।  अतः अर्जुन जैसे व्यक्ति को कृष्ण के प्रत्यक्ष निर्देशन मैं ऐसी उदारता या अहिंसा का परित्याग कर देना चाहिए।

भगवद गीता यथारूप