Monday, 14 September 2015

Bhagavad-gita as it is: Chapter 2 -Text 1

                                                     संजय उवाचा
तं तथा कृपयाविष्टम् अश्रुपूर्णाकुलेक्षणम् विषीदन्तम् इदं वाक्यं उवाचा मधुसूदन:।।  2.1

हिंदी अनुवाद 
संजय ने कहा करुणा से व्याप्त, शोकयुक्त, अश्रुपूरित नेत्रों वाले अर्जुन को देख कर मधुसूदन कृष्ण ने ये शब्द कहे।  

तात्त्प्र्ये  श्रील  प्रभुपाद द्वारा :  (Purport by HDG A.C. Bhaktivednta Prabhupada ) 

भौतिक पदार्थो  के प्रति करुणा, शोक तथा अश्रु- ये सब असली आत्मा को न जानने के लक्षण है। शाश्वत आत्मा  के प्रति करुणा ही आत्म-साक्षात्कार  है। इस श्लोक मैं मधुसूदन शब्द महत्वपूर्ण है।  कृष्ण ने मधुसूदन नामक असुर का वध किया था और अब अर्जुन चाह रहा है की कृष्ण  उस अज्ञान रूपी असुर का वध करे जिसने उसे कर्तव्ये से विमुख कर रखा है।  यह कोई नहीं जानता की करुणा का प्रयोग कहा होना चाहिए।  डूबते हुए मनुष्ये के वस्त्रो के लिए करुणा मूर्खता होगी।  अज्ञान सागर मैं गिरे हुए मनुष्ये को केवल उसके बाहरी पहनावे अर्थात शरीर की रक्षा कर के नहीं बचाया जा सकता।  जो इसे नहीं जनता और बाहरी पहनावे के लिए शोक  करता है, वह शूद्र कहलाता है अर्थात वह वृथा ही शोक करता है।  अर्जुन तो क्षत्रिये था, अतः उससे ऐसे आचरण  की आशा न  थी।  किन्तु भगवान कृष्ण अज्ञानी पुरष के शोक को विनिष्ट कर सकते है और इसी उद्श्ये से उन्होंने। भगवदगीता का उपदेश दिया।  यह अध्याय हमे भौतिक शरीर तथा आत्मा  के वश्लेषिक अध्ययन द्वारा आत्म-साक्षात्कार का उपदेश देता है, जिसकी व्याख्या परम अधिकारी भगवान कृष्ण द्वारा की गयी है।  यह साक्षात्कार तभी संभव है जब मनुष्ये निष्काम भाव से कर्म करे और आत्म-बोध को प्राप्त हो।